बुधवार, 11 अगस्त 2010

कभी कश्मीर कुछ और हुआ करता था.. (HISTORY OF KASHMIR)



आज कश्मीर भले ही आतंकवाद, अलगाववाद, धार्मिक कट्टरता के साथ ही सेना की हिंसा और पाकिस्तानी मंसूबों के कारण दुनिया के सबसे संवेदनशील स्थानों में से एक माना जाता है। यहां की वादियां भले ही आज खून से लाल है, लेकिन इतिहास सदा से ही कश्मीर की गौरवशाली गाथा सुनाता आया है। इतिहास के साथ ही हमारे महान ग्रन्थ भी कश्मीर को स्वर्ग का प्रतिरूप मानते आए है।
‘कश्मीर’ नाम जितना आकर्षक है उतना ही अद्वितीय हैं वहां की वादियां, वहां की साहित्य, संस्कृति एवं इतिहास। आतंकवाद, अलगाववाद की विषैली कीटों को यदि साफ कर दे तो कश्मीर को आज भी निःसदेह धरती का स्वर्ग कहा जा सकता है। अपने इतिहास, दर्शन, संस्कृति, भाषा, रंगमंच आदि के माध्यम से कश्मीर ने विश्व भर में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। इसके पर्यटन स्थल आज भी दुनिया भर के पर्यटकों एवं प्रकृति प्रेमियों को रोमांचित करते हैं।
कल्ल्हड द्वारा लिखी गई राजतरंगिणी सदियों से कश्मीर के गौरवशाली इतिहास एवं संस्कृति की प्रवक्ता रही है। यह अद्भुत ग्रंथ दुनिया भर में कश्मीर के ऊपर लिखी गई पुस्तकों के लिए व्यापक संदर्भ ग्रंथ रही है। राजतरंगिनी हमें कश्मीर के रग-२ से रूबरू कराती है।
कश्मीर के इतिहास को समृद्ध बनाया है वहां सदियों से फल-फूल रही विभिन्न संस्कृतियों ने। अनादिकाल से कश्मीर का क्षेत्र नाना प्रकार से जातियों एवं धर्मों के लोगों की निवास स्थली रही है। वैदिक, बौद्ध, जैन, इस्लाम, तुर्क, पठान, सिख आदि यहा आये बसे और समृद्ध हुए। बल्लभदेव, वसुगुप्त, सोमानन्द, भास्कर, कल्लट, सुभट, जयरथ और लल्लदे जैसे महान विचारकों ने कश्मीर को चिंतन और दर्शन का सबसे बड़ा केन्द्र बना दिया।
राजतरंगिणी बताती है कि कश्मीर प्राचीन काल में वैदिक ऋषि अंगिरस की तपोस्थली रही, उसके बाद से ही इस पवित्र भूमि पर ज्ञान के अंकुर फूटते रहे हैं। शैव दर्शन व शैवागमों की परम्परा इसी धरती पर फली-फूली। अनेक विदेशी राजा भी कश्मीर आने के बाद यहीं के होकर रह गये। वैदिक सभ्यता के बाद कश्मीर बौद्धधर्म के सबसे बड़े केन्द्रों में गिना जाने लगा। संघभद्र जैसे महान बौद्ध उपदेशकों ने कश्मीर को अपने ज्ञान वितरण का केन्द्र बनाया। कनिष्क और जुग्क जैसे अनेक विदेशी राजाओं ने भी कश्मीर की छटा से मोहित होकर अनेक विहारों का निर्माण करवाया।
कश्मीर की धरती ने अनेक प्रतापी शासकों को जन्म दिया है। ९वीं सदी की रानी दिप्ती जैसी प्रतापी शासिका को कौन भूल सकता है जिसने महमूद गजनी को धूल चटाया। प्रसिद्ध चीनी यात्री हुएनसांग भी कश्मीर की वादियों में दो वर्ष तक रहा है। अपने दर्शन में उसने कहा है कि यहां की अद्भुत छटा मानवीय चेतना को अपनी आगोश में लेकर उसे सदा के लिए अपना बना लेती है।
ईसापूर्व की शताब्दियों से लेकर १३वीं शताब्दी तक काव्य शास्त्र और नाट्यशास्त्र के समग्र चिंतन का उत्थान और प्रवाह कश्मीर की धरती पर हुआ। अग्निपुराण में वर्णित कश्यप ऋषि के नाम पर कश्मीर को काश्यपी या काश्यपपुत्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि महानतम्‌ नाट्यशास्त्री भरतमुनि ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ नाट्यशास्त्र का प्रवचन कश्मीर की भूमि पर ही किया।

इतिहास का दुर्भाग्य है कि कश्मीर की गौरवशाली महिमामय धरती आज आतंकवाद के घृणित आक्रमणों से रक्तरंजित हो चुकी है। गंगा जामुनी और सूफियाना संस्कृतियों से गुलजार रहने वाली वादियां आज बंदूकों और तोपों की गड़गड़ाहट से गुंजित है । वहां के सन्नाटे में शांति नहीं बेचैनी व्याप्त है। नमाज की अजान और शंख और घंटों से एक साथ गुंजित रहने वाली फूलों की घाटी आज पत्थरों और गोलियों की घाटी में तब्दील हो चुकी है। हिमालय की चोटियों पर जमी बर्फ रक्तरंजित है....।

कश्मीर की वर्तमान दुर्दशा के पीछे इसका समृद्ध इतिहास विलुप्त होता जा रहा है जो अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण है। सूफी-संतो, कवियों एवं ऋषियों की यह पवित्र भूमि संपूर्ण विश्व के लिए धरोहर है। इस धरोहर पर आघात विश्व संस्कृति पर आघात है।
क़ाश समय का पहिया एक बार फिर घूमता ...............................................................??
आशीष मिश्र