सोमवार, 24 जनवरी 2011

किताबें मेरी हमराही हैं ......................

एक फीचर .....


पुस्तकें अपनी पहचान और महत्व को खोती जा रहीं हैं । पढ़ने की संस्कृति विलुप्त हो रही है । फिर दौड़भाग भरी जिंदगी में टीवी, इंटरनेट, फेसबुक और ईबुक जैसे माध्यमों ने किताबों की प्रासंगिकता को खत्म कर दिया है। किताबें जनता के बजट से बाहर हो चुकी हैं । ऐसे में कुछ कठिन सवाल हर बार उठते हैं । पुस्तक मेले और बड़ी साहित्यिक गोष्ठियों में ये प्रश्न और भी मारक रूप से सामने आते हैं। चिंता व्यक्त की जाती है, शोक मनाया जाता है। सबका एक ही सवाल आखिर किताबों का भविष्य क्या है ? इस तरह के प्रश्नों पर कई तरह के मत सामने आते हैं।
प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी किताबों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं । वे कहते हैं कि यह बुक रीडिंग का नहीं स्क्रीन रीडिंग का युग है। इसका यह अर्थ नहीं है कि रीडिंग के पुराने रूपों का खात्मा हो जाएगा।किंतु यह सच है कि स्क्रीन रीडिंग से पुस्तक, पत्र-पत्रिका आदि के पाठक घटेंगे। यह रीडिंग का प्रमुख रूप हो जाएगा। पुरानी रीडिंग के रूप वैसे ही बचे रह जाएंगे जैसे अभी भी राजा बचे रह गए हैं। एकदम शक्तिहीन। पुस्तक का भी यही हाल होगा।
जब लोग 6-8 घंटे स्क्रीन पर पढ़ेंगे या काम करेंगे तो पुस्तक वगैरह पढ़ने के लिए उनके पास समय ही कहां होगा! बच्चों के बीच धैर्य कम होता चला जाएगा।इस समूची प्रक्रिया को इनफोटेनमेंट के कारण और भी गंभीर खतरा पैदा हो गया है। अब टीवी देखते समय हम सोचते नहीं हैं, सिर्फ देखते हैं। बच्चे किताब पढ़ें इसके लिए उन्हें शिक्षित करना बेहद मुश्किल होता जा रहा है।
लेकिन आईआईएमसी की लाइब्रेरियन प्रतिभा शर्मा के विचार कुछ भिन्न हैं । उनका मानना है कि किताबों का क्रेज कभी कम नहीं हो सकता। जिन्हें पुस्तकों में दिलचस्पी है वे किताब पढ़े बिना संतुष्ट नहीं होते भले ही किताब में लिखी बात अन्य मीडिया के माध्यम से वे जान चुके हों।
शायद इन्हीं विचारों को पुष्ट करने के लिये वे अपने कार्यकाल के पहले ही वर्ष संस्थान में पुस्तक मेले का एक सफल आयोजन करती हैं । इसके पीछे वे एक अलग तरह का कारण बताती हैं । वे कहती हैं ज़माना बदल गया है आज के छात्र लाइब्रेरियन या अध्यापक द्वार चुनी हुई या कहें थोपी हुई किताबों से संतुष्ट नहीं है । वैश्वीकरण के दौर में उनकी पसंद में जबर्दस्त बदलाव आया है । उनके चुनाव करने की क्षमता भी विकसित हुी है ।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैने इस मेले का आयोजन करवाया । यहां छात्रों और अध्यापकों को अपने पसंद की किताबों को अपने लाइब्रेरी के लिये चयन का अधिकार दिया गया है। यह एक नई परंपरा है आशा है यह छात्रों को भी पसंद आयेगी ।
प्रोफेसर आनंद प्रधान का मानना है कि यह एक बेहतरीन पहल है। किताबें हमारे जीवन का एक नया दरवाजा खोलती हैं । किताबें तो दुनिया की खिड़की होती हैं। पुस्तक प्रदर्शनी का उद्देश्य ही होता है पढ़ने लिखने की संस्कृति को प्रोत्साहन देना । उनका मानना है कि वैश्वीकरण के इस दौर में किताबें भी ग्लोबल हो रही हैं । दुनिया के बड़े बड़े प्रकाशक भारत आ रहें हैं । भारतीय प्रकाशक भी देश की सीमाओं को लांघने लगे हैं।
किताबों के भविष्य उज्ज्वल है।

लेखक एवं व्यंगकार यशवंत कोठारी कहते हैं कि भइया किताबें कितनी भी मंहगी क्यों न हो जायें मेरे झोले में पत्र पत्रिकाओं के अलावा किताबें हमेशा रहती हैं। हर पुस्तक मेले में जाता हूं। किताबें उलटता हूं, पलटता हूं, कभी कभी कुछ अंश वहीं पर पढ़ लेता हूं या फोटोकॉपी करा लेता हूं, मगर पुस्तक खरीदना हर तरह से मुश्किल होता जा रहा है।
वास्तव में हर किताब एक मशाल है। एक क्रान्ति है, ऐसा किसी ने कहा था। किताब व्यक्ति के अन्दर की नमी को सोखती है। थके हुए आदमी को पल दो पल का सुकून देती है, किताबें। हारे हुए आदमी को उत्साह, उमंग और उल्लास देती है किताबें। वे जीने का सलीका सिखाने का प्रयास करती है। सूचना, विचार दृष्टिकोण, दस्तावेज़, प्यार, घृणा, यथार्थ, रोमांस, स्मृतियाँ, कल्पना, सब कुछ तो देती हैं किताबें मगर कोई किताब तक पहुँचे तब न।
पुस्तकें हमारे जीवन का सच्चा दर्पण हैं। वे हमारे व्यक्तित्व, समाज, देश, प्रदेश को सजाती है, सँवारती है, हमें संस्कार देती है । किसी व्यक्ति की किताबों का संकलन देखकर ही आप उसके व्यक्तित्व का अंदाजा लगा सकते हैं। कहते हैं कि किताबें ही आदमी की सच्ची दोस्त होती हैं और दोस्तों से ही आदमी की पहचान भी। अतः किताबों के भविष्य पर शंका करने से बेहतर है कि हम उनसे दोस्ती बढ़ायें उन्हे अपना हमराही बनायें । कहते हैं न कि मित्र हमेशा आपके पास आपकी मदद के लिये नहीं रह सकतें हैं लेकिन किताबें और उनसे मिलने वाला ज्ञान परदेश और वीरानें के अकेलेपन में भी आपकी सच्ची मार्गदर्शक और मित्र होती हैं ।

अंत में कुछ विद्वानों के कथन से पुस्तकों की महत्ता को परिभाषित किया जा सकता है --

थोमस ए केम्पिस कहते हैं-"बुद्धिमानो की रचनाये ही एकमात्र ऐसी अक्षय निधि हैं जिन्हें हमारी संतति विनिष्ट नहीं कर सकती. मैंने प्रत्येक स्थान पर विश्राम खोजा, किन्तु वह एकांत कोने में बैठ कर पुस्तक पढ़ने के अतिरिक्त कहीं प्राप्त न हो सका."
क्लाईव का कथन है कि " मानव जाति ने जो कुछ किया, सोचा और पाया है, वह पुस्तकों के जादू भरे पृष्ठों में सुरक्षित हैं".
वहीं बाल गंगा धर तिलक ने कहा था " मैं नरक में भी पुस्तकों का स्वागत करूँगा क्यूंकि जहाँ ये रहती हैं वहां अपने आप ही स्वर्ग हो जाता है".

आशीष मिश्र