
आज कश्मीर भले ही आतंकवाद, अलगाववाद, धार्मिक कट्टरता के साथ ही सेना की हिंसा और पाकिस्तानी मंसूबों के कारण दुनिया के सबसे संवेदनशील स्थानों में से एक माना जाता है। यहां की वादियां भले ही आज खून से लाल है, लेकिन इतिहास सदा से ही कश्मीर की गौरवशाली गाथा सुनाता आया है। इतिहास के साथ ही हमारे महान ग्रन्थ भी कश्मीर को स्वर्ग का प्रतिरूप मानते आए है।


कश्मीर के इतिहास को समृद्ध बनाया है वहां सदियों से फल-फूल रही विभिन्न संस्कृतियों ने। अनादिकाल से कश्मीर का क्षेत्र नाना प्रकार से जातियों एवं धर्मों के लोगों की निवास स्थली रही है। वैदिक, बौद्ध, जैन, इस्लाम, तुर्क, पठान, सिख आदि यहा आये बसे और समृद्ध हुए। बल्लभदेव, वसुगुप्त, सोमानन्द, भास्कर, कल्लट, सुभट, जयरथ और लल्लदे जैसे महान विचारकों ने कश्मीर को चिंतन और दर्शन का सबसे बड़ा केन्द्र बना दिया।
राजतरंगिणी बताती है कि कश्मीर प्राचीन काल में वैदिक ऋषि अंगिरस की तपोस्थली रही, उसके बाद से ही इस पवित्र भूमि पर ज्ञान के अंकुर फूटते रहे हैं। शैव दर्शन व शैवागमों की परम्परा इसी धरती पर फली-फूली। अनेक विदेशी राजा भी कश्मीर आने के बाद यहीं के होकर रह गये। वैदिक सभ्यता के बाद कश्मीर बौद्धधर्म के सबसे बड़े केन्द्रों में गिना जाने लगा। संघभद्र जैसे महान बौद्ध उपदेशकों ने कश्मीर को अपने ज्ञान वितरण का केन्द्र बनाया। कनिष्क और जुग्क जैसे अनेक विदेशी राजाओं ने भी कश्मीर की छटा से मोहित होकर अनेक विहारों का निर्माण करवाया।
कश्मीर की धरती ने अनेक प्रतापी शासकों को जन्म दिया है। ९वीं सदी की रानी दिप्ती जैसी प्रतापी शासिका को कौन भूल सकता है जिसने महमूद गजनी को धूल चटाया। प्रसिद्ध चीनी यात्री हुएनसांग भी कश्मीर की वादियों में दो वर्ष तक रहा है। अपने दर्शन में उसने कहा है कि यहां की अद्भुत छटा मानवीय चेतना को अपनी आगोश में लेकर उसे सदा के लिए अपना बना लेती है।
ईसापूर्व की शताब्दियों से लेकर १३वीं शताब्दी तक काव्य शास्त्र और नाट्यशास्त्र के समग्र चिंतन का उत्थान और प्रवाह कश्मीर की धरती पर हुआ। अग्निपुराण में वर्णित कश्यप ऋषि के नाम पर कश्मीर को काश्यपी या काश्यपपुत्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि महानतम् नाट्यशास्त्री भरतमुनि ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ नाट्यशास्त्र का प्रवचन कश्मीर की भूमि पर ही किया।

कश्मीर की वर्तमान दुर्दशा के पीछे इसका समृद्ध इतिहास विलुप्त होता जा रहा है जो अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण है। सूफी-संतो, कवियों एवं ऋषियों की यह पवित्र भूमि संपूर्ण विश्व के लिए धरोहर है। इस धरोहर पर आघात विश्व संस्कृति पर आघात है।
क़ाश समय का पहिया एक बार फिर घूमता ...............................................................??
आशीष मिश्र
बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंब्लाग जगत की दुनिया में आपका स्वागत है। आप बहुत ही अच्छा लिख रहे है। इसी तरह लिखते रहिए और अपने ब्लॉग को आसमान की उचाईयों तक पहुचइये मेरी यही शुभकामनाएं है आपके साथ
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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जवाब देंहटाएंकश्मीर का पौराणिक-साहित्यिक इतिहास जानकार अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख.
sabhi ko bahut dhanyavad......... aasha karte kashmir ke purane din fir loutenge .......
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
इस नए सुंदर चिट्ठे के साथ आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंmitra tumne to kashmir k swarnim itihas ki vistrit vyakhya kar di.iske liye badhai.ummed karta hu ki jannat k din phir bahurenge.
जवाब देंहटाएंaapne kasmir ki taraf dekhne ka ek alag nazariya diya ab yahi sawal dil me hai ki kyo shantipasand kashmiri hinsa k marg par utar aaye
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है... सच में कश्मीर पृथ्वी का स्वर्ग है...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लेख है भाई !!
जवाब देंहटाएंसच कहूँ तो कश्मीर के इतिहास के बारे में इस तरह की विस्तृत और सकारत्मक जानकारी इस से पहले नहीं पढ़ी थी..
बहुत बढियां !!
उम्मीद करता हूँ की कश्मीर की वादियों में वो पुराने दिन फिर लौट आयेंगे.. आमीन !!!
bahoot ache likhte ho ya toh pta tha lakin itne ache likhte ho wo ise padh kare pta chale gaye hai asish tumne jo bhi likhe hai bahoot ache likhe hai really nice jitne tarif ki jaye utnei kaam hai.
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