बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

धर्म का धंधा ( business of religion )

वैर कराता मंदिर मस्जिद मेल कराती...............
भारत एक ऐसा देश है जहां धर्म का कारोबार सबसे तेजी से फल-फूल रहा है। इस धंधे में हर तरह की गंदगी को नज़र अंदाज़ किया जाता है। काले को सफेद और अवैध को वैध बनाने का सबसे अच्छा माध्यम है ये पाक कारोबार है। यदि किसी को मंदिर मस्जिद या फिर गुरुद्वारा बनाना हो तो यकीन मानिये कि किसी भी तरह की समस्या नहीं हो सकती । जमीन का रजिस्ट्रेशन ,इनकम टैक्स, संपत्ति का ब्योरा और स्रोत कुछ भी बताने दिखाने की ज़रूरत नहीं। किसी नाजायज़ विवादित या सरकारी जमीन को कब्जाना है तो धार्मिक ढ़ाचे बनवा दी जिये । नेता से मंत्री तक सब आपके साथ खड़े होकर निर्माण करवायेंगे। भारत में तो रातों-रात मंदिर मस्जिद बनाये जाते हैं। चौराहा हो रेलवे स्टेशन हो या फिर कोई पार्क , जहां चाहिये आसानी से कब्जा हो जाता है।

10 वर्ष पूर्व दिल्ली में गिने चुने सांई मंदिर हुआ करते थे। लेकिन आज देखिये जहां कभी पार्क या कूड़ा घर हुआ करता था आज वहां सांई जी विराजमान हैं । न जाने कितने ही ऐसे मंदिर मस्जिद हर दिन बन कर तैयार हो रहें हैं । जिनमें ज्यादातर पुलिस और मीडिया के देखरेख में बनवाये जाते है। जमीन मुफ्त की मिल ही जाती है और पैसा तो धर्म के नाम से आ जाता है ।चिंता है तो सुरक्षा और संरक्षण की, तो जनता है न। किसी की बुरी नज़र अगर इस तरफ जाती भी है तो उन्मादी जनता ढाल बन जाती है या बना दी जाती है। वोटबैंक नेता,अधिकारी और मंत्री जी पर भी अंकुश लगा देता है।

दिल्ली में सरकारी जिनमें रेलवे एयरपोर्ट नगरनिगम और न जाने कितने ही विभाग ऐसे हैं जिनकी जमीनों पर कितने ही अवैध मंदिर मस्जिद बना दिये गये । रेलवे प्लेटफार्म से लेकर बस अड्डे तक सब जगह मंदिर मस्जिद वाले अपना कब्जा किये बैठे हैं। न जाने कितने कि गलत कामों को इन स्थानों से संचालित किया जाता है। सब मिली भगत का खेल। नीचे मंदिर मस्जिद बने हैं ऊपर तरह तरह के अवैध व्यापार हो रहें हैं। पूरे प्रांगड़ को मंदिर के नाम पर निजी इस्तेमाल किये जाते हैं । इन स्थानों पर चढ़ावे के धन का भी बंदर बांट होता है । नारियल और अन्य प्रशादों को उन्हीं दुकानों पर फिर से रीसाइकल किया जाता है।


मंदिर मस्जिद आज अपराधियों का अड्डा और छिपने के बेहतरीन स्थान बनते जा रहें हैं। अयोध्या में न जाने कितने मंदिर ऐसे हैं जिनमें रहने वाले लोग हत्या बलात्कार जैसे अपराधों को अंजाम देने के बाद चैन की बंसी बजा रहे हैं । मथुरा और देवबंद जैसी जगहों की कहानी भी यही हैं । पुलिस भी ऐसे स्थानों पर जाने से डरती है । आजके हमारे धर्मस्थल असमाजिक तत्वों के पनाहगार बनते जा रहें हैं। यह नेता, पुलिस, पुजारी प्रशासन सबका साझा कारोबार है ।
यूरोप की जनता तो चर्च और पोप के जाल से बच निकली है । चर्च का महान साम्राज्य ध्वस्त हो चुका है। वहां की जनता अब धार्मिक अंधविश्वासों और उनके पीछे छिपे लोगों को पहचान चुकी है। उसने सीख लिया है कि कैसे धर्म के ठेकेदारों से सचेत रहना है । अब सवाल यह उठता है कि भारत में धार्मिक आस्था के नाम से राज कर रहे कुछ धूर्तों से छुटकारा कैसे पायें । जिन परिस्थितियों में आज देश है ऐसे में इन धार्मिक इमारतों की प्रासंगिकता क्या है। इनका लगातार होता निर्माण कितना जायज़ है ।

पिछले दिनों निजामुद्दीन स्टेशन के पास गिराये गये इसी तरह के अवैध मस्जिद रूपी ढांचे पर कितना बवाल हुआ । किस किस तरह की राजनीति खेली गई। दंगा भड़कते भड़कते रह गया । सरकार ने सरेंड़र न किया होता तो न जाने क्या अनर्थ हो जाता ।

इस तरह के स्थानों की याद लोगों को तभी आती है जब उनका निर्माण होना हो या उन्हे तोड़ने की बातें होती है। बाकी के समय इस तरह के निर्माण या तो व्यक्तिगत संपत्ति बन कर रह जाते हैं या फिर उपेक्षा में धूल फांक रहे हैं । अयोध्या में राम मंदिर या बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण की कितनी ही बातें क्यों न होती हो लेकिन उसी अयोध्या में सैकड़ो मंदिर- मस्जिद ऐसे हैं जो निहायत ही जर्जर अवस्था में है। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। न तो नेता न ही श्रद्धालु । हां सब की चाहत यही है कि हर गांव हर चौराहे पर एक मस्जिद या मंदिर बना दिया जाय ।

धर्म के पीछे की राजनीति को समझना आसान नहीं है। इसमें हांथ डालने वाला अपना हांथ जला ही लेता है। आज साजिस के तहत देवता और देवियां बनाई जा रही हैं । कहतें है कि कलयुग में कोई ईश्वर अवतार नहीं लेता लेकिन आज कितने ही ईश्वर हमारे सामने पिछले 200 सालों में अवतरित हो चुके हैं । कितने ही हैं जो ईश्वर की निर्माण प्रक्रिया में हैं । जल्द ही वे भी ईश्वर स्वीकार लिये जायेंगें। 18वीं सदी में जन्में साईं बाबा शायद पहले देवता हैं जिन्हें गढ़ा गया है। आज तो उनका पुनर्जन्म भी हो चुका है । नये सांई पैदा हो चुके हैं । नये सांई का इतिहास बताने की जरूरत नहीं है। इसके अलावा आशाराम बापू और अमृतानंदमयी मां (अम्मा) तो अपने भक्तों में देव तूल्य हो चुके हैं और न जाने कितने ही ऐसे बाबा हैं जिनका विशाल साम्राज्य है और जो अपनी पूजा करवातें हैं। आगामी समय में हो सकता है कि योग गुरू रामदेव के भी मंदिरों का निर्माण होने लगे ।

इस्लाम धर्म भी एक क्रांति के दौर में हैं यह दौर है अधिक से अधिक लोगों को नमाज़ी मुस्लिम बनाना । जो भटक गयें हैं उन्हें मस्जिदों में दुबारा लाना । कुरान के आदेशों और शरीयत को लागू करना । इसके लिये बड़ी संख्या में मस्जिदों का निर्माण हो रहा है। अब चाहे सांई की बढ़ती सत्ता हो या मुस्लिम धर्म में मस्जिद बनाने की होड़ । इसका अंत कहां है। देश के हजारों ऐसे गांव है जहां स्कूल अस्पताल नहीं है लेकिन वहां मस्जिद जरूर मिल जायेगें । लोगों में धार्मिक स्थानों के प्रति गहरी आस्था और उन्माद पैदा किया जा रहा है। उन्हें इसकी सबसे अधिक जरूरत का अहसास कराया जाता है। कितने ही लोग ऐसे है जिन्होने समाज के उत्थान वाले कामों मसलन शिक्षा,स्वास्थ, अनाथ एवं वृद्धा आश्रमों पर एक भी पैसा दान नहीं किया है लेकिन धर्म के नाम पर उन्होने अपनी जमीन तक बेच दी है। धर्म का यही उन्माद कुछ लोगों के लिये फायदे का सौदा बन गया है।

किसी अपाहिज को एक रुपये भीख न दे सकने वाला पढ़ा लिखा नवजवान शनिदेव की बाल्टी में न जाने क्या सोच कर दिल खोल देता है। कई लोगों ने तो यहां तक निर्णय कर लिया है कि उनकी कमाई चाहे काली हो या गोरी जितने गुना बढ़ेगी वे उसी अनुपात में चढ़ावा बढ़ा देंगे।

अब समाधान पर विचार करें तो हम पाते हैं कि इस अंध भक्ति को दूर करना आसान नहीं है। आखिर इस तरह के काम ही तो जन्नत और वैकुंठ का द्वार खोलते हैं । आज लोगों को अपने वर्तमान से ज्यादा भविष्य की चिंता है वो भी ऐसा भविष्य जो मृत्यु के बाद का है। जनता को यह समझना जरूरी है कि उसका भविष्य मंदिर मस्जिद या गुरुद्वारे में नहीं है । बल्कि शिक्षा स्वास्थ और रोजगार में है । पूजा अर्चना नमाज तो घर बैठ कर हो सकता है । क्या किसी देवता ने प्रकट होकर यह कहा है कि मैं सिर्फ मंदिर मस्जिद रुपी ढ़ाचे में ही मिलुंगा। आस्तिकों के लिये तो ईश्वर उसके दिल में विराजमान होते हैं । स्वच्छ मन मस्तिष्क द्वारा किसी भी एकांत स्थल पर ईश्वर की सत्ता से साक्षात्कार किया जा सकता है। फिर ऐसे मंदिर मस्जिद की क्या जरूरत है जिनका आधार तुच्छ राजनीति, खूनी संघर्षो और न जाने कि कितने ही जोड़ तोड़ और कुकर्मों के बाद निर्मित किया जाता है।
अगर कुछ बनाना ही है कि अस्पताल, स्कूल बूढ़ो, बच्चों और अबला महिलाओं के लिये आश्रम और सामुदायिक केंद्र या चौपाल बनवायें जहां बिना किसी भेदभाव के किसी भी धर्म जाति लिंग के स्त्री पुरूष आकर अपना दुख दर्द बांट सके । शायद इसी में इंसानियत को एक बेहतर भविष्य मिल जाये .......................

यह लेख 28 फरवरी 2011 को जनसत्ता के संपादकीय पृष्ट पर प्रकाशित हो चुका है
आशीष मिश्र

11 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लिखा अच्छे सवाल उठाये

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  2. जनता को यह समझना जरूरी है कि उसका भविष्य मंदिर मस्जिद या गुरुद्वारे में नहीं है । बल्कि शिक्षा स्वास्थ और रोजगार में है । पूजा अर्चना नमाज तो घर बैठ कर हो सकता है । क्या किसी देवता ने प्रकट होकर यह कहा है कि मैं सिर्फ मंदिर मस्जिद रुपी ढ़ाचे में ही मिलुंगा।..................... बहुत खूब.......... सच कहा

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  3. बहुत उम्दा लिखा है आशीष भाई।

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  4. क्या बात है आशीष जी,खरी बात के लिए बधाई।

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  5. आपने मेरे सहित न जाने कितनों की बात कह दी .स्वामी विवेकानंद ने कहा था ” भूखे को धर्म से पहले रोटी दो ” .आज धर्म भ्रष्टाचार का सबसे शसक्त ‘ अड्डा ‘ है ,चाहे कोई हो .धर्म ,मजहब ,पंथ ,ज्योतिष नजूमी न जाने कितने रूपों में अन्धविश्वास को बढ़ा भ्रष्टाचार के करक बन रहे हैं . जिस साईं ने अपनी ज़िन्दगी में जूते तक नहीं पहने और काठ पर बैठ किसी को भी भूखा नहीं रहने दिया ,उनको टनों के सोने के सिंहासन पर बैठा करोड़ों का व्यापार हो रहा है .उनके नाम पर जन की ज़मीन अबैध रूप से हन्थियाना मंदिर मस्जिद या तमाम तथाकथित पूजास्थल न सिर्फ अन्धविश्वास बढ़ा रहे हैं ,माफिया गिरी के भी हिस्से हैं .
    लेकिन लड़े कौन और कैसे ? अन्धविश्वास से लडाई सबसे मुश्किल लडाई होती है .

    राज सिंह

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  6. सभी का धन्यवाद ..

    राज जी मैं आपसे बिल्कुल सहमत हूं…
    परमज्ञान, सच्ची साधना के साथ मानसिक और आत्मिक शांति के प्रतीक ये धर्म स्थल आज अपने विकृतम रूप में हमारे सामने मौजूद हैं…
    धार्मिक संस्थानों के भ्रष्ट आचरण के कारण ही लोग तेजी से नास्तिक होते जा रहें हैं..

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  7. आशीष जी आपने ये बात बिलकुल सही की हमारे देश में धर्म के नाम पर सब कुछ बिक जाता हैं आखिर कुछ कथित पवित्र लोग धर्म प्रचार क्यों करते हैं? यह समझ में नहीं आता! धर्म का संबंध निज आचरण से है। सामान्यतः दूसरे पर दया करना, मीठी वाणी में सभी से चर्चा करना तथा सभी के प्रति समान भाव रखने के साथ ही सर्वशक्तिमान की भक्ति तथा उसके गुणों की पर विचार करना ही धार्मिक आचरण की परिधि में आता है। जब धर्म अपने आचरण से दृश्यव्य है तो फिर उसे दूसरे लोगों को बताने की आवश्यकता क्या है?

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  8. mere bhai...
    aapne achchha likha hai.
    dharma aur pantha me antar hai...
    dharma me sabke aajivika ki sunder vyavastha hai.
    dharma ka palan karne me dhan ka bhi apna ek upyog hai.
    aur ha mere bhai aapne jo likha hai wah dhandha dharma ka nahi dharma ke aadambar karne walo ka hai.
    waise dharma to ek prakash ki tarah hai koi is ujale me galtiya kare jaise koi bhojan banane ke liye upyogi agni se logo ka ghar jalaye to isme agni ka kya dosh ? dharma jara gambheer vishay hai aur har jagah hai kewal bharat me hi nahi prithwi par har jagah iske ot me log kai tarah ke karname karte hain .............. aapke lekh me aapki bechaini dikhti hai aur yah kafi jaruri bhi hai...tabhi sudhar ki ummid banti aur sawarti hai....shukriya!!

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  9. आशीष भाई आपने बहुत परिपक्वता के से इस लेख को लिखा है। सरल शब्दों से बड़े ही बेजोड़ तरीके से खेला है। आपकी कलात्मकता को नमन। आप पाखण्डियों को बेनकाब करने की मुहिम छेड़ दीजिये, हम भी आपके साथ हैं। आपका कटाक्ष करने का तरीका चुभने वाला है। पाखण्डी इसे पढ़कर तिलमिला जायेंगे। ये सिलसिला बना रहना चाहिये। मेरी शुभकामनायें।


    INDER

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