लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ कि उसके चेहरे पर सदा के लिये उदासी छा गई । पिता को अचानक खोने के बाद उसका रक्तचाप(BP) बिगड़ गया । इसका असर किडनी पर भी हुआ। अचानक एक दिन जांच करवाने पर पता चला कि उसकी दोनों किडनियां खराब हो चुकी हैं..
लगातार अघातों ने उसके खिले हुये चेहरे को सदा के लिये निस्तेज बना दिया था। यार- दोस्तों में इतना दम न था कि वे उस मुरझाये चेहरे को फिर से खिला सकें.. निराशा, उदासी ,अकेलापन उसकी नियति बन चुकी है ।
अब उसे हफ्ते में दो दिन डायलसिस करवानी पड़ती है। हर दिन पीड़ादाई और संघर्ष पूर्ण हो चुका है। लेकिन उसका आत्मबल और हार न मानने की जिद उसे जीने की शक्ति प्रदान कर रहा है।
वही अभी लंबा जीवन जीना चाहती है, बिल्कुल आम लड़की तरह। अभी सारे ख्वाब उसके आंखों में तैर रहे हैं ।
लेकिन शायद समाज ऐसे लोगों की हिम्मत बढ़ाने के बजाय हौसला तोड़ने की कोशिश करता रहा है।
मैं स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पीजी कर रहा हूं लेकिन वह अभी तक उसी डिपार्टमेंट की खाक छान रही है। उसे दो साल से परीक्षा में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा रही है। कारण उपस्थिति कम होना बताया जाता है । गुरुओं को पिता से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त है लेकिन किसी अध्यापक ने इस लड़की की पीड़ा को नहीं समझा है। मदद तो दूर कोई सांत्वना के दो शब्द बोलने को तैयार नहीं।
एक ऐसा संस्थान जिसमें सदा से जुगाड़बाजों का बोलबाला रहा है , हमारे समय में भी कितने ही सहपाठी 30-40 % अटेंडेंस लेकर भी परीक्षा पार करते आयें हैं । उनको किसी ने नहीं समझाया कि बेटा अगले साल परीक्षा देना लेकिन सोनिया को हर कोई यही समझा देता है कि बेटा आप अगले साल परीक्षा दो तो बेहतर होगा..
काश कोई उसके दर्द को समझता ..
जामिया के V.C., H.O.D, अध्यापक गणों आप सब से निवेदन है कि नियम कानून इंसानों के लिये बनाये जाते हैं लेकिन आप लोगों ने उसे इंसान से ऊपर की वस्तु बना दी है.. आशा है आप अपने विवेक का उपयोग करेंगे..
सोनिया शायद एक साल और इंतजार न कर सके ....
