मंगलवार, 15 मार्च 2011

मुझे भी जीने का हक है.....

चार साल पहले एक ऐसी चंचल लड़की से मिला था जिसे देखकर ऐसा लगता था मानो उसने दुख या उदासी कभी देखी ही न हो। हर वक्त हंसना खिलखिलाना, सबके साथ उठना बैठना , सबसे बातें करना, दोस्ती करना, रोते हुए को हंसाना उसके गुण हुआ करता था..

लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ कि उसके चेहरे पर सदा के लिये उदासी छा गई । पिता को अचानक खोने के बाद उसका रक्तचाप(BP) बिगड़ गया । इसका असर किडनी पर भी हुआ। अचानक एक दिन जांच करवाने पर पता चला कि उसकी दोनों किडनियां खराब हो चुकी हैं..
लगातार अघातों ने उसके खिले हुये चेहरे को सदा के लिये निस्तेज बना दिया था। यार- दोस्तों में इतना दम न था कि वे उस मुरझाये चेहरे को फिर से खिला सकें.. निराशा, उदासी ,अकेलापन उसकी नियति बन चुकी है ।
अब उसे हफ्ते में दो दिन डायलसिस करवानी पड़ती है। हर दिन पीड़ादाई और संघर्ष पूर्ण हो चुका है। लेकिन उसका आत्मबल और हार न मानने की जिद उसे जीने की शक्ति प्रदान कर रहा है।
वही अभी लंबा जीवन जीना चाहती है, बिल्कुल आम लड़की तरह। अभी सारे ख्वाब उसके आंखों में तैर रहे हैं ।
लेकिन शायद समाज ऐसे लोगों की हिम्मत बढ़ाने के बजाय हौसला तोड़ने की कोशिश करता रहा है।
मैं स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पीजी कर रहा हूं लेकिन वह अभी तक उसी डिपार्टमेंट की खाक छान रही है। उसे दो साल से परीक्षा में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा रही है। कारण उपस्थिति कम होना बताया जाता है । गुरुओं को पिता से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त है लेकिन किसी अध्यापक ने इस लड़की की पीड़ा को नहीं समझा है। मदद तो दूर कोई सांत्वना के दो शब्द बोलने को तैयार नहीं।
एक ऐसा संस्थान जिसमें सदा से जुगाड़बाजों का बोलबाला रहा है , हमारे समय में भी कितने ही सहपाठी 30-40 % अटेंडेंस लेकर भी परीक्षा पार करते आयें हैं । उनको किसी ने नहीं समझाया कि बेटा अगले साल परीक्षा देना लेकिन सोनिया को हर कोई यही समझा देता है कि बेटा आप अगले साल परीक्षा दो तो बेहतर होगा..
काश कोई उसके दर्द को समझता ..
जामिया के V.C., H.O.D, अध्यापक गणों आप सब से निवेदन है कि नियम कानून इंसानों के लिये बनाये जाते हैं लेकिन आप लोगों ने उसे इंसान से ऊपर की वस्तु बना दी है.. आशा है आप अपने विवेक का उपयोग करेंगे..
सोनिया शायद एक साल और इंतजार न कर सके ....


8 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक.... बहुत विचारणीय स्थिति है....

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  3. सही कहा आशीष जी आपने नियम काननों इंसान के लिए बनाये लेकिन हम लोगो ने उसे इंसान से ऊपर की वस्तु बना दी हैं
    पर इसका समाधान क्या
    समस्या गंभीर है..और चिंतनीय भी .......
    कॉलेज प्रशाशन से तो कोई उम्मीद नहीं हैं
    सभी लोग एक ही थैली के चट्टे - बट्टे हैं
    इक दर्द महसुस हुआ आज आप की इस पोस्ट को पढ़कर ...
    दीपाली पाण्डेय

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  4. हमें मिलकर सोनिया के लिये आवाज उठानी है.. कानूनों की आड़ में अमानवीयता को मंजूरी नहीं दी जा सकती । आखिर कोई भी कानून इंसानियत से बढ़कर नहीं होता। सोनिया की हिम्मत हमारे लिये प्रेरणा का स्रोत है ।


    आशीष मिश्र

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  5. ये गलत है, हर इंसान को गलत के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए, गलती का सबसे बड़ा पैमाना नैतिक मूल्य होते है और विश्वविद्यालय अथवा शिक्षकों का यह कृत्य किस प्रकार की शिक्षा प्रणाली को दर्शाता है।

    Naveen Kumar

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  6. यह विडंबना है इस व्यवस्था की. कबीर ने इन्हीं परिस्थितियों में यह लिखा होगा कि "संतो देखत जग बौराना, साँच कहौं तो मारन ...धावै, झूठे जग पतियाना रे..." कौन नहीं जानता है कि सरकारी छुट्टी के आवेदनों से लेकर तमाम अन्य लाभों के लिए इस देश में लोग आधे से ज्यादा मामलों में फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट लगाते हैं. 'अरे यार मेडिकल लगा देंगे' एक प्रचलित जुमला बन गया है. और ऐसे लोगों का काम भी आसानी से हो जाता है. लेकिन यदि आपका केस जेनुइन है और मानवीय आधार पर आपका हक़ बनता है तो सत्ता के भ्रष्ट पोषकों को कानून याद आ जाता है. इसे विडंबना कहिए या दुर्भाग्य, इस देश की ज़्यादातर जनता इस तरह की परिस्थितियाँ भुगतने के लिए विवश है. बस जब इसकी आँच हमारे गिरेबान तक आती है तो इसकी तपिश हमें ज़्यादा खलती है. वक़्त आ गया है कि लोग अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संगठित होना सीखें.

    शशि के झा

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  7. ओह! यह तो बहुत दुखद है। अभी सोनिया कैसी है? परीक्षा की अनुमति का क्या हुआ?

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  8. @smart indian सोनिया की तबियत दिनों दिन बिगड़ रही है। हालांकि सोनिया कोई अकेली ऐसी लड़की नहीं है हमारे समाज में तमाम ऐसे लोग हैं जो तथा कथित नियम कानूनों की आड़ में अपने जीने का हक खो रहे हैं। खैर परीक्षा की अनुमति तो मिलना दूर की बात है ... कॉलेज को डर है कि इससे एक गलत परंपरा की शुरुआत होगी जो उनकी प्रतिष्ठा को मलिन कर सकता है.. खैर सोनिया को अब डिग्री नहीं किडनी चाहिए..

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