बुधवार, 9 मार्च 2011

रेशम का धागा नहीं, अब बांधिये प्लास्टिक और नायलॉन





एशिया का सबसे बड़ा थोक बाजार कहा जाने वाला दिल्ली का सदर बाजार इन दिनों तरह तरह की रंग बिरंगी राखियों से अटा पड़ा है । 500 से भी अधिक दुकानें रक्षाबंधन के लिये पूरी तरह से समर्पित हैं । ये दुकानों रक्षाबंधन से संबंधित सभी तरह की सामग्रियों से सजी हुई हैं। स्थाई दुकानदारों के अलावा सैकड़ों दुकानदारों ने रेहड़ी पट्टियों पर भी अपनी दुकानें सजायी है। भाई बहन के इस प्यार भरे त्योहार के नजदीक आते ही पूरे उत्तर भारत से खासकर एनसीआर क्षेत्र के व्यापारी बड़ी संख्या में सदर बाजार पहुंच रहे हैं। हर तरफ जबर्दस्त उत्साह का वातावरण बन चुका है।
हालांकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा चलाई गई इलेक्ट्रानिक राखी , आधुनिक कार्डों और खासकर मंदी के असर को यहां के बाजार पर साफ तौर पर देखा जा सकता है। पिछले कुछ सालों से पड़ोसी देश चीन की हमारे देश के तीज-त्योहारों में खास दिलचस्पी देखी जा सकती है । खुद किसी धर्म में विश्वास करें या न करें लेकिन धर्म और उनके त्योहारों से व्यवसायिक लाभ कमाना चीनी कंपनियां अच्छी तरह जानती हैं। अब तो रेशम पर भी चीनी व्यापारियों की धाक साफ देखी जा सकती है। रक्षाबंधन के मद्देनज़र चीन की बनी हुई जो राखियां बाजार में आई हैं वे देखने में अत्यंत आकर्षक हैं। वहीं राखियों की लागत कम करने के लिये भारतीय व्यापारी भी चीनी धागों और कच्चे माल का इस्तेमाल कर रहें हैं।

पिछले वर्ष की तूलना में राखियों के दाम दो गुने भी ज्यादा भले ही बढ़ गये हैं लेकिन डिजाइन या गुणवत्ता में कोई खास अंतर नहीं आया है। बाजार में बच्चों को लुभाने वाले स्पाइडर मैन , हनुमान , खली , औऱ हैरीपॉटर के प्रतिरूप वाली राखियां खूब दिख रही हैं। इसे चीनी व्यापारियों के दिमाग का करामात कहें या वक्त का तकाज़ा, अब रेशम के बने धागों की जगह प्लास्टिक और नायलॉन की बनी राखियों ने ले लिया है । थोका विक्रेताओं के पास एक रूपये दर्जन से लेकर 5000 हजार रुपये दर्जन तक की राखियां मौजूद हैं। पिछले वर्ष आई आर्थिक मंदी का असर राखियों की बिक्री पर साफ नज़र आ रहा है। राखी व्यापारी थोक खरीदारों की बेरुखी और मंहगाई की मार से निराश हैं।

राखियों के थोक विक्रेता अंजू भाई के मुताबिक पिछले साल की तूलना में इस बार बाज़ार हल्का है। बज़ार की लगभग सभी बड़ी दुकानों में करोणों का माल रखा हुआ है । वे कहते हैं कि रक्षाबंधन को सिर्फ पांच दिन बाकी है लेकिन राखियों का अंबार लगा हुआ है । कुल बिक्री पूछने पर वे निराशा भरे स्वर से कहते हैं कि माल इस बार 50 प्रतिशत भी बिकने की उम्मीद नहीं है ।
सड़क किनारे रेहड़ी लगाने वाले रामू ने बताया कि बाजार में राखियों की बिक्री तो खूब है लेकिन दाम बढ़ने से दुकानदारों का मुनाफा कम हो गया है । कुछ भी क्यों न हो भाई बहन के इस पवित्र त्योहार रक्षाबंधन के उत्साह को मंहगाई की मार कम नहीं कर सकतीं।
(यह लेख राष्ट्रीय समाचार पत्र ‘देश बंधु’ में प्रकाशित हो चुका है।)

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